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बंद दरवाजा
मेरे गाँव का प्यारा पोखर
“फकीर” सब “रईस” हुए, सादगी जाती रही
उनकी महफिलें सजती रहीं, तन्हा हम होते गए ...
श्रमाश्रित से हुये मशीनाश्रित
परिवर्त्य (दोहे)
प्रोन्नति
क्या भूलूं क्या याद करूं ...
दिल तोड़ने से पहेे
गढ़ (चौपाल)
तुम भी जग जाओ ...
हूँ अग्निशिखा की अपशिष्ट ...
सच झूठ
नाभकीय परिवार
हुआ बावला निर्विकार ...
पयाम है तेरे नाम की
चे चलो तुम समय चीर ...
नौसेना दिवस
एड्स महामारी
आना अरि की छाती चीर
“फकीर” सब “रईस” हुए, सादगी जाती रही
शौक़ सारे छिन गये