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Bhajans: -
Teri Soorat Pe Balihaari
Teri Murli Di Meethi Taan
Tere Mathe Mukut Viraj Raho
Mohe Bhayee Shayam Se Preet
Mujhe De Darshan Girdhari Re
Muhobat Karke Pachhtaye Udhav
Meri Ek Hi Tamanna Sanwre Bihari
nhất Janamshtmi Bhajan
nhất Krishna Bhajan
Lên trên Radha Bhajan
Aarti Sangrah
Vrindavan Khel Machayo Bhari | 2017 Superhit Holi Bhajan
Braj Mein Priyakant Ju Ke Sang Hori Khelu Rangbhari
Jagat Sab Chhod Diya
Radha Rani Ke Charan
Janam Anmol Re Tu Radhe Radhe Bol Re
Shri Govardhan Girdhari chính Aayo Sharan Tumhari
Tero Hải Jaye Beda Paar
VSSCT Samaroh: -
Holi Mahotsav
Guru Purnima Mahotsav
Janamashtmi Mahotsav
Priyakant Ju Pran Pratishtha
Kalash Yatra
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पृष्ठभूमि-
12 सितम्बर 1978 को श्री कृष्ण जी की जन्मभूमि मथुरा के माॅंट क्षेत्र के ओहावा ग्राम में एक ब्राहम्ण परिवार में जन्में श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी अपने बाल्यकाल से ही भारतीय संस्कृति और संस्कारों के संवाहक बने हुये हैं. ग्रामीण पृष्ठभूमि के माताजी श्रीमति अनसुईया देवी एंव पिताजी श्री राजवीर शर्मा जी से बृज की महत्ता और श्री कृष्ण भगवान की लोक कथाओं का वर्णन सुनते हुये आपका बालजीवन व्यतीत हुआ. राम-कृष्ण की कथाओं का प्रभाव आप पर इस कदर पड़ा कि प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने से पहले ही वृन्दावन की कृष्णलीला मण्डली में शामिल हो गये. यहाॅं श्री कृष्ण का स्वरूप निभाते कृष्णमय होकर आत्मिक शान्ति का अनुभव करने लगे. आप लीला मंचन में इतना खो जाते कि साक्षात कृष्ण प्रतिमा लगते. यहीं दशर्कों ने आपको ‘ठाकुर जी’ का सम्बोधन प्रदान किया. वृन्दावन में ही श्री वृन्दावनभागवतपीठाधीश्वर श्री पुरूषोत्तम शरण शास्त्री जी महाराज को गुरू रूप में प्राप्त कर प्राचीन शास्त्र-ग्रन्थों की शिक्षा प्राप्त की.
समाजिक क्षेत्र में पदार्पण -
आपने प्राचीन भारतीय ग्रन्थों का गहनता से अध्ययन किया तो पाया कि ईश्वर के अवतारों, सन्तो, ऋषि-मुनि और महापुरूषों की सभी क्रियायें समाज का हित करने का सन्देश देती हंै. सभी धर्म भी समाज और उसमें रहने वाले प्राणिमात्र की उन्नति और कल्याण की बात कहते हैं. श्री राम और श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाये और जीवन क्रियायें समाज में व्याप्त अत्याचारए अधर्म, हिंसा, अनैतिकता, धनी-निर्धन, ऊॅंच-नीच और छुआछूत जैसी सामाजिक कुरूतियों और बुराईयों के विनाश और निदान के लिये समर्पित थीं. आज हम अपने अराध्य को मानते हैं लेकिन उनकी शिक्षाओं को नहीं मानते हैं. जबकि हम उनके जीवन से शिक्षा लेकर अपने वर्तमान समाज को ऐसी बुराईयों से दूर रख सकते हैं.
इसी विचार को सिधान्त मानकर श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी ने श्री राम-कृष्ण कथाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराईयों के खिलाफ सन्देश देने का कार्य प्रारम्भ किया. आप कथा प्रसंगों को केवल कहानी की तरह प्रस्तुत नहीं करते वरन् वर्तमान परिस्थितियों में उनकी सार्थकता और उपयोगिता सिद्ध करते हैं. जिससे श्रोतागणों में अपने कत्वर्यो के प्रति जागरूकता का विकास होता है.
सन् 1997 में दिल्ली से इन प्रेरणादायी कथाओं का प्रारम्भ आपने किया.