यूपी गन्ना किसान पर्ची कलेंडर व अपने सट्टे से जुड़ी सारी जानकारी cổng web या e-Ganna App Tải xuống करके मोबाइल के जरिए पता कर सकता है। मोबाइल पर किसान पर्चियों के अलावा सालों के गन्ना सप्लाई सप्लाई की जानकारी भी ले है।इससे किसानों को कोई काम होने पर गन्ना विभाग या शुगर फैक्टरी के चक्कर नहीं काटने होंगे। LÊN trực tuyến Cổng lịch Ganna Kisan Parchi 2020 गन्ना भुगतान 2020-My Kisan
हमारी जनसँख्या एक अरब पहुँचने में कई सौ हज़ार साल लगे .. और करीब 200 साल में हमारी जनसँख्या 7.5 अरब के पार पहुँच गई. कई nhà khoa học की माने तो हमारे पास सिर्फ 2 अरब लोगों के sinh tồn के लिए tài nguyên có sẵn हैं. यानी हमें अपने tài nguyên और sản xuất lương thực को सावधानी से sử dụng करने की जरूरत है ताकि हम अतिरिक्त 5.5 अरब लोगों की आवश्यकताएं पूरी कर सकें.!
लोगों की खान-पान की जरूरतों को पूरा करने के लिए trồng trọt के नए-नए तरीके अपनाए गए..ज्यादा उपज के लिए phân bón और thuốc trừ sâu के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया. वहीँ दूध और अन्डो की मांग बढ़ने से पालतू जानवरों को ज्यादा घने sắc thái में रखने की शुरुआत की गई. और जरूरत पड़ने पे उन्हें मांस के लिए बाजार पहुँचाया जाने लगा.!
आज के समय में canh tác hữu cơ दुनिया भर की मात्र 1% đất nông nghiệp में की जा रही है. ये phương pháp canh tác bền vững तो है ही साथ ही canh tác thông thường की अपेक्षा ज्यादा thân thiện với môi trường है.! biến đổi khí hậu से निपटने के लिए phương pháp canh tác के इस का इस्तेमाल किया जा रहा है.
लेकिन दुःख की बात ये है कि biến đổi khí hậu canh tác hữu cơ का giải pháp hoàn chỉnh नहीं है..और इसीलिए इसपे बहस अभी भी जारी है. về mặt lý thuyết, canh tác hữu cơ में phân bón hóa học, thuốc diệt cỏ, thuốc trừ sâu या किसी भी तरह के phụ gia का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. इन सबके बजाय किसानों को दूसरे lựa chọn thay thế tự nhiên का इस्तेमाल करना चाहिए. !
गन्ने का इतिहास
गन्ने का मूल स्थान भारतवर्ष है। पौराणिक कथाओं तथा भारत के प्राचीन ग्रन्थों में गन्ना व इससे तैयार की जाने वाली वस्तुओं का उल्लेख पाया जाता है। विश्व के मध्य पूर्वी देशों सहित अनेक स्थानों में भारत से ही इस उपयोगी पौधे को ले जाया गया। प्राचीन काल से गन्ना भारत में गुड़ तथा राब बनाने के काम आता था।
उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में जावा, हवाई, आस्ट्रेलिया आदि देशों में जब सफ़ेद दानेदार चीनी का उद्योग सफलतापूर्वक जो जर्मनी
इस परिस्थिति का लाभ भारत में चीनी उद्योग की स्थापना को मिला। सन् 1920 भारत के तत्कालीन गर्वनर जनरल ने चीनी व्यवसाय की उज्जवल भविष्य की कल्पना करते हुए इण्डियन शुगर कमेटी की स्थापना की थी। वर्ष 1930 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की गन्ना उप समिति की सिफारिश पर एक 'टैरिफ बोर्ड' की स्थापना की गयी भारत भारत सरकार से चीनी 15 में के लिये संरक्षण देने की सिफारिश की उद्योग को संरक्षण प्रदान किया गया।
उत्तर प्रदेश में यद्यपि देवरिया के प्रतापपुर नामक स्थान पर 1903 में ही भारत की प्रथम प्राचीनत् चीनी मिल स्थापित हो थी परन्तु परन्तु गन्ना-विक्रय कोई संस्थापित पद्धति के अभाव में गन्ना किसानों अनेकों अनेकों भारत सरकार द्वारा पारित शुगर केन एक्ट 1934 द्वारा प्रदेशीय सरकारों को किसी क्षेत्र को नियंत्रित करते हुये वैक्यूम पैन चीनी मिलों प्रयुक्त होने वाले वाले न्यूनतम मूल्य निर्धारित करने के अधिकृत वैक्यूम
उत्तर प्रदेश में सन् 1935 में गन्ना विकास विभाग विभाग स्थापित हुआ। सरकार ने गन्ना कृषकों की मदद की दृष्टि से ’शुगर फैक्ट्रीज़ कन्ट्रोल एक्ट 1938’ लागू किया। वर्ष 1953-54 में इसके स्थान पर ’उ 0 प्र 0 गन्ना पूर्ति एवं खरीद विनियमन अधिनियम 1953’ लागू हुआ।