राग द बैराग ोईोईोईमज ता बैबै बैबै और अपरे बैराग मन का आनंद है बैराग आत्मा की परमात्मा में लीन होने की लालसा है बैराग का अर्थ दुनिया से विरक्त होकर जंगलो में पलायन करना नहीं बैराग का अर्थ तो दुनिया में रहकर अपने अंदर अंतरात्मा को ढूढ़ना है, बैराग का अर्थ त्याग है, आत्मा परमात्मा के पपतततत बैरग री रणी, एर बैरागी रे रर अर थररथ र है ीी ज ज ज बैरागी ोगोग सारी ट ऊच रीच छूत ात से परे है | बैरागी सम्प्रदाय के संस्थापक स्वामी रामानंद जी कहते है की समाज में ऊच -नीच नहीं है व प्रत्येक इन्सान उस आत्मा का अंश है वह कहते थे की सामाजिक उची जाति के कर्म कण्डी व्यक्ति से एक साधारण व्यक्ति श्रेस्ठ है, जो सभी में परममता को देखता है औऔ ईषऔ औ बैरागी धारणा को मानते हुए ही स्वामी रामानंद जी ने बैरागी सम्प्रदाय की नीव रखी, जो उनको वैषणव मत के कर्मकांडी गुरु भाइयो से हुई आध्यामिक लड़ाई में से पैदा हुई है इसी धारणा को मानते हुए ही स्वामी रामानंद जी उस समय माने जाते अछूत और पिछड़े लोगो ोोननन नन ररी ाण गुरु रररथथथ
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